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महामृत्युंजय अनुष्ठान

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महामृत्युंजय अर्थात त्र्यंबकेश्वर

ऊँ त्र्यंबकम् यजामहे सुगंधीम् पुष्टी वर्धनम्।

उर्व्वावरूक मिवबंधनान् मृत्योर्मुक्षी यमामृतात्।।

इस मंत्र का आरंभ त्र्यंबक स्वरुप शिवजी के नाम से होता है। त्र्यंबक का अर्थ (त्रिअंबक इति त्रिंबक) है विश्व के तीन दिव्य चक्षू अर्थात ब्रम्हा, विष्णू, महेश तीन नेत्रोंसे युक्त नेत्रका प्रतिक है और त्र्यंबकका सरल अर्थ है तीन क्षेत्रोका यर्था ज्ञान रखनेवाला त्र्यंबकेश्वर। श्री त्र्यंबकेश्वर भगवान के अखंड पूजन एवंम् स्मरणसे सिद्ध बनने के लिए वर्धिष्णु होना चाहिए अगर मन प्रसन्नता एवंम् पवित्रतासे

सुगंधित है तो शरीर में पुष्टि (आरोग्य) बढाता है। अगर ऐसा होगा तो शरीर मे विषम द्रव्य बनता रहेगा जिससे शरीर को नुकसान पहुचता है। अगर यही द्रव्य शरीरसे निकाला जाये तो निश्चितही इस शरीर के ग्रंथीयोमेंसे अपने आप सुगंधी द्रव्य बहता रहेगा। किंन्तु इसके लिए भी इंद्रीय संयम की जरूरत है। मनको विकारोंसे अलिप्त रखना चाहिए। शंकर भगवान ने इसी हेतुसे मदन का दहन किया। जिसके परिणाम स्वरुप कंठ में विष धारण करने के पश्चातभी उनपर विष-प्रभाव नही हुआ। त्र्यंबकेश्वर महामृत्यूंजय ज्योर्तिलींग भगवान को अध्यात्मिक नजर से देखा जाये तो षटचक्रोमेसे पाचवे विशुद्ध चक्रमे उन्होने विष रखा है। विशुद्ध चक्रमे विष को शुध्द बनाकर निरूपद्रवी बनाया है और उनकी स्थिती कैलासमयी अर्थात सहस्त्राधार चक्रकी और निर्देश करती है। यहॉ इन्होने प्राण वृक्षसे अपने आप अलग होता है वैसेही यह साधना रुपी शाश्वतता है। महामृत्यूंजय मंत्र मे यही शाश्वतता दर्शनोंकी क्षमता है।

मृत्यूंजय जपंनित्यमय् करोती दिने दिने।

तस्य रोगा: प्रण श्यंति दिर्घायुश्च प्रजापते।।

जा प्रति दिन महामृत्यूंजय मंत्र का जाप करता है। उसके सभी रोग नष्ट होकर दीर्घायुष्य प्राप्त करता है। मार्केडेय ऋषी चिरंजीव थे उन्होने अपने एक पौराणिक कथा द्वारा मृत्यूंजय मंत्र महानता को विषद किया है। कथा सनत ऋषी द्वारा बालक ऋषी चिरंजीवी भव आशिष देणे बाद उन्हे मालुम हुआ की जिसे वे आशीर्वाद दे रहे है उनकी आयु मात्र दस साल है। काल की अपनी गती है। ये बात इस स्थान पर श्री महामृत्यूंजय जाप एवंम् हवन अनुष्ठान करने से इंन्सान को मंत्र की सारी सिद्धिया प्राप्त होती है। महामृत्यूंजय जाप सव्वालक्ष की संख्या में सामान्यत: होना चाहिये। तद् दशांश हवन, मार्जन, तर्पण, भोजन करने से त्र्यंबकेश्वर भगवान की कृपा, प्रिती संपादित कि जा सकती है, और संसार को बचाया जा सकता है।

काल की कराल गती से बचनेवाले महामृत्यूंजय मंत्र को निम्न परिस्थितीओं मे आवश्य प्रयोग करना चाहिए। जैसे मृत्यूतुल्य रोग की स्थिती, अकाल मृत्यू का भय राजदंड रुप में मृत्यू का भय,स्वास्थ्य, पारिवारीक क्लेश, आरोग्य की कमी एवंम् हानी, धन की भारी हानी आदी ऐसी कठीण स्थितीयोंमें महामृत्यूंजय भगवान ही सहारा दे सकते है। शास्त्र के विभिन्न कार्यो के अनुसार इस जाप की विभिन्न संख्या तथा संपुटादी का भी प्रयोग है। किंन्तु सत्य इतनाही है की श्रध्दा से पूर्ण भक्ति में लिन होकर मंत्र के यथार्थ ज्ञानवाले ब्राम्हणोद्वारा इसका पाठ करने से आप उचित धैर्य साध्य कर सकते है, और संसार के बंधनो से मुक्ती पाकर अंतत: शिवलोग मे विलीन हो जाते है।

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